________________ तस्य चंद्रमती प्रिया // 25 // तस्या विनीततनयोऽजनि देवदिन्नो / यद्दाननिर्जित श्वातितरां सकष्टः // संमूर्छितोऽब्धिलहरीजलसिच्यमानो--ऽप्यासादयेत्सुरमणिर्न हि चेतनत्वं / // 26 // सोऽन्यदा धनदत्तस्य / तनयां विनयांचितां // परिणिन्ये मनोज्ञांगीं। देवीवदेवसुंदरीं // 27 // तौ वनं यौवनं प्राप्तौ। गत्वा केलीमनुत्तरां // कुर्वाणावुनयोः पुंसो-चांस्य. शृणुतामिति // // उक्तमेकेन धन्योऽयं / देवदिन्नो धनं निजं // मुंजानश्च ददानश्च / फ.! लं लात्यस्थिरश्रियः // 25 // यतः-वीरेण नीरेण नयेन मत्या / दानेन मानेन धनेन ग त्या // विनाति गोकूपमहीपमंत्रि-धनेश्वरक्षत्रियपूरुषाश्च // 30 // वृशेन परिणीता स्त्रीः / लक्ष्मीः कृपणसंचिता // फलावलीव वृक्षाणां / परैरेव हि जुज्यते // 31 // तावदुक्तं द्वितीयेन / धिगमुं जननीसमां // जनकोपार्जितां लक्ष्मी / यो जुक्ते गतहीरिह // 35 // यतः-मातृतुल्या पितुर्लक्ष्मी-बर्बाल्ये वासस्तया समं // शोजते यौवनेऽप्येवं / कुर्वन् कैः कैन नियते // || // 33 // तद्वाक्यं देवदिन्नस्य / सप्रियस्यापि मानसः // अजिनवाणवबीर्षे / स च तूर्णमधू- || PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust