________________ वरित्रं प्रो एव हि // तस्मात्प्राणप्रियानावे / प्राणत्यागो ममोचितः // // एवं विचिंत्य संध्यायां / जनैः कैश्चिदलहिता // निर्गत्य नगरात्प्राप / कलहंसी वनांतरे // 23 // विहायामृतयशसं / नेदेहमपरं वरं // स चास्मिन् मे नवे नाभू-दयो भूयानवांतरे // 24 // इत्युक्त्वा वृदशा१६३ खाया-मारुह्य कंठकंदले // पाशं दत्वा निरालंबं / निजं देहं मुमोच सा // 25 // तावज्जटि ति सापश्य-वस्यप्रासादसंस्थितं // यात्मानं विस्मिता जझे / ततस्तरलितेक्षणा॥ 26 ॥तावत्तत्र स्फुटीभूय / यक्षिणी जयसुंदरी // कलहंसीमुवाचैवं / चंचलकुंमलमंगला // 27 // वत्से न विस्मयः कार्यो / मनस्तापोऽपि नो मनाक् // नवांतरस्य माताहं / त्वदीया जयसुं. दरी // 27 // पाशं नित्वा मयैतस्मिन् / प्रासादे त्वं निवेशिता // नवांतरस्य वृत्तांतः। सर्वस्तस्या निवेदितः // 25 // श्रुत्वा नवांतरं जात-जातिस्मृत्या विलोक्य च // स्वयं सा प्राह हे मातः / सत्यमेतत्त्वयोदितं // 3 // एषा प्राह्रियते बाला-सुरविद्याधरादिनिः // कलहंसी ति यक्षिण्या / कलहंस्येव निर्ममे // 31 // जो कुमार महाजाग / साहमेवास्मि यक्षिणी // / / एषा हंसीव सा कन्ये—त्युक्त्वा ला देवताजवत् // 35 // कुमारस्तां पुरो दृष्ट्वा / चिंतयामा- || P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust