________________ नवंतौ ।नैमित्तिकोक्तो प्रवरौ वरौ मे // वृत्तांतमाकर्ण्य तयैवमुक्तं / बनूवतुस्तौ मुदितावतीव || // 51 // कन्या पुनः प्राह विभू जवळ्या-मवशितिस्ताव दिदैव कार्या // बहिर्न हि वाचरित्री पि कदापि गम्यं / नैवेदृशं क्वापि समस्ति रम्यं // 55 // चतुर्दिशाखस्य पुरस्य पावे। चत्वा रि विस्तारिवनानि संति // विलोकनीयानि न तानि नित्यं / वनं विशेषादपि दाक्षिणात्यं // // 53 // ज़क्त्वेति तौ नानविलेपनाथैः / सेष्टानि मिष्टानि च जोजयंती // शुश्रूषयामास तथा कथंचि-गतं यथैकणव दिनेन // 55 // गेहेऽपि किंवः गमनेन साध्यं / किं वा महा. सागरलंघनेन // अत्रैव भोगादिसुखानि संति / तत्र स्थितौ ताविति चिंतयित्वा // 55 // वीणे मरुन्मोहमहाविकारे / पुमानिवापोपशमं पयोधिः // प्रस्यावमाप्ताद्य जनाः समस्ताः / प्रय पोतं खरहाण्यवेयुः // 56 // अथो द्वितीये दिवसे क्वचिरसा / जगाम बाला वचसा रसाला // कुतूहलानिःक्षणिको क्षणेन तौ / निर्गतौ लोकयितुं वनानि // प्राच्यासुदीच्यामपि च प्रतीच्यां / महीरुहैश्चंपकचूतमुख्यैः // विराजमानानि वनानि तान्यां / यथाक्रमं तत्र विलोकितानि // 7 // अन्योन्यमालोचयतां ततस्तौ.। मनोहराएयेव वनान्यमूनि // दृष्टा- || पाप P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaragihak Trust