________________ नुरक्ता विनयेन युक्ता / कुर्वोऽनया जोगसुखानुभूति // 41 // न मुखश्रीजितपूर्णचं विखोक्यते केन न कोऽपि लोकः // अस्मिन् पुरे धान्यधनालये पि / पृष्टेति तान्यां निज| गाद सैवं // 43 // निशम्यतामत्र समस्त्यपूरे / महापुरं नाम पुरं महीयः // तत्रास्ति लक्ष्मी| तिलकानिधानः। दोणीपतिः वीणरिपुप्रतानः // 44 // तस्याजवं सतसुतोपरिष्टा-दहं सुता रूपवती वरिष्टा // उद्यौवना यत्रदिने सजाया-मागम्य तातांगमुपाविशं च // 45 // अत्रांतरेऽष्टांगनिमित्तवेत्ता / समागतः संशयजावनेता // पृष्टः स राज्ञा मम पुत्रिकाया। अस्या वरः को नविता वदैतत् // 46 // स प्राह राजन् शृणु सावधानं / समुद्रतीरेऽस्ति पुरं प्रधानं // निष्कास्य तस्मान्मनुजान् समस्तान् / राजांगणे स्थापय तत्र पुत्रीं // 47 // समेष्यतस्तत्र नरावुनौ यौ / जाव्यौ वरौ तौ तव पुत्रिकायाः॥राजाह नैमित्तिक मे सुतेय-मेका वरौ कौ किमिदं त्वयोक्तं सप्राह नाश्चर्यमिदं नरें।यतोन नाव्यं ध्रुवमन्यथा स्यात् ॥कि पांमुपुत्रापदात्मजायाः।पंचप्रमाणाः पतयः श्रुता नए विसृज्य नैमित्तिकमुत्तमं तं / निर्वास्य लोकान्नगरादितश्च / / अस्थापयन्मामुपवेश्मनीह / विलोकयंती जवदागमार्थ // 50 // समागतौ संप्रति तो P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust