________________ - वतानुष्टिता मायां / पश्यामि किमु नेदृशीं // 15 // इत्येवं संशयापन्नः / स यावदवतिष्टते // तावत्सर्वेऽपि तत्पादौ / नेमुः सामंतमंत्रिणः // 13 // करकंमुममुं प्राज्ञा / जो नजंतु महीपति // इत्याकाश प्रदेशस्थ देवतानां गिरोऽनवत् // 14 // दीप्तिनिर्दीप्यमानेऽस्मि-नुदयत्यंशुमालिनि // जट्टेः कोलाहलश्चके / प्रबुद्धैरिव पक्षिनिः // 15 // प्रोत्फुलढोलमुख्यानि / बधिरीकृतदिङ्मुखं // वादका वादयामासु-वादित्राणि तदग्रतः // 16 // अलंकुरुष्व हे खामिन् / श्रीकांचनपुरं पुरं // निर्नाथं न पुरं नाति / निर्नेत्रं वदनं यथा // 17 // स्वा"मिन्नलं विलंबेन / मतंगजमलंकुरु // सामंतैरिति विज्ञप्तः / प्रारुरोह स हस्तिनं // 17 // स नेत्राण्यंबुजानीव / तत्रासीनो व्यकाशयत् // पूर्वाचलमिवारूढ / उदयन् भानुमानिव // 15 // कुंनिकुंजस्थलारूढः / कांतनिर्जितकांचनः // स कांचनश्रियं दः / श्रीकांचनपुरं विशन् // 20 // तत्पिता कुत्सिताकारा-चांमालोऽज्ञायि वामवैः // क्रोधेनाध्मातचेतोनिः / सर्वैः संजूय मंत्रितं // 1 // पशुत्वाद्विद्यते नैव / विवेकः कोऽपि दंतिनः // विवेकरहिता एते / | सामंताः पशुसन्निनाः // 15 // येनैतेषु महीपाल-कलनेष्वत्र सत्वपि // चांमालबालकस्या- || --.P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust