________________ श्री जो रत्नं त-न्मा विनश्यतु सांप्रतं // इत्यायति चिंतयन् दीर्घ-मतिः स करुणापरः // 17 // रथादुत्तीर्य वीर्याढ्यः / शूरसेनस्य तां गदां // स तूर्णं चूर्णयामास / स्वेन दंडेन केवलं चरित्र | // // त्रिनिर्विशेषकं // गदांचूर्णमयीं दृष्ट्वा / जयोडेकवशंवदः // दुःस्खापनोदनसखीं / मूर्जा लेने स सैन्यपः // 25 // उपाचरन्नरेशस्तं / वारिचंदनवीजनैः // महांत उपकुर्वति / दुःस्थावस्थानरीनपि ॥२०॥हिषं व्यावृत्तचैतन्यः / सैन्यपः स्वौपचारकं // दृष्ट्वा मानधनो मेने / जीवितान्मरणं वरं // 1 // अंतरिक्षमिवातार-मतारमिव लोचनं // कासारमिव निर्नीरं / निःशाखमिव शाखिनं // 25 // चं निश्चंजिकमिव / निर्नृत्यमिव जूजुजं // जुजंगमिव निर्दष्ट्र-मंगवातजूषणं // 3 // निस्तोरणमिव छारं / निर्दत मिव दंतिनं // निरस्त्रं शूरसेनं तं / वीदयेषजहसुर्जनाः // 24 // त्रिभिर्विशेषकं // ह्रिया नम्रमुखः पश्यन् / विविकुस्वि जूतलं // अनश्यजीचमादाय / सेनानीः सेनया सह // 25 // जयानंदः समुत्तस्थौं / सजीजूतः क्षणांतरे // अजूजयजयारावः / करकंमुबलेऽखिले // 26 // करकंमौ महाशूरे / || स्वयं योऽधुं समुद्यते // जयादिव दिवाधीशो / निलीनः पश्चिमांबुधौ // 27 // प्रससारांधका P.P.AC.GunratnasurrM.S. Jun Gun Aaradhak Trust