________________ 157 प्रत्येकी नूप, पापर्धि-व्यसनं न तवोचितं // 6 // रसातलं गलतु पूरुषाणां / तत्पौरुषं यझरणादि / / केषु // अपापराधेषु वनस्थितेषु ।जीवेषुपर्णा शिषु निर्दलेषु॥६ए। वरमंधो वरं पंगु-वरं रोगी चरित्र नरः परं // आत्मतृप्तिकृते जंतून् / निघ्नतो निघृणो जनः // // उक्तं नृपेण देव्येवमेवैतन्नात्र संशयः // अद्यप्रजृति पापर्धे-राजन्म नियमो मम // 1 // तयोक्तं तव सत्त्वेन / तुष्टाहं पुरुषोत्तम // वद चित्तेपितं यत्ते / तन्मया पूरयिष्यते // 3 // राझोक्तं देवि मे ना. न्य-दीप्सितं तव दर्शनात् // परमेतस्य कोहस्य / परिवेषो निवर्ततां // 3 // तयोक्तं तन्निवृत्तं ते / पापस्यैव निवृत्तितः // अन्यदन्वीक्ष्यते यत्ते / तत्तथार्थय पार्थिव // 4 // राझोक्तं त्वत्प्रसादेन / राज्यराष्ट्रसुतादिकं // समस्तं विद्यते देवि / परमेकापि नो सुता // 35 // परोपयोगिनी पुत्रीं / फलालिमिव मे विना // पुत्रपत्राश्रितस्यापि / वृक्षस्येव निरर्थता // 6 // तत्प्रसीद महादेवि / सुतामेकां प्रदेहि मे // श्रुत्वेति यक्षिणी स्वीयां / सुतां तामनयत्पुरः // // निवेश्य भूपतेरंके / प्राह सा साश्रुलोचना // निजांगजाधिका ज्ञेया / कन्येयं मम व. राजा // 7 // अस्या हि मन्मनोल्हापै-मन्मनो रज्यते धनं // परं त्वत्प्रार्थनाजंग-जी-| P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trus!