________________ पो चापे भूपो यदा ताव -यक्षिणीति व्यचिंतयत् // 57 // हरिणेक्षणया साकं / मत्पुत्र्या / / हरिणा श्ह // क्रीमति स्वेच्या तन्मे / समे पुत्रसमा श्मे // 57 // अकृयो नृपः एतांस्तान् चरित्रं हंति हिंसापरायणः ॥रदामि तन्मृगान्मृत्योर्मंगयातश्च मर्त्यपं // एए // एवं विचिंत्य राजें-परिधौ सर्वतः कृतः // तया वज़मयः कोट्टो-प्रकटश्चर्मचक्षुषां // 6 // // यदंतर्वर्तिना पुंसा / वस्तुजालं बहिर्गतं // अतिरोहितवत्त / दृश्यते दृष्टिगोचरं // 1 // हरिणांश्चवतो हंतुं / भूपश्चिदेप मार्गणं ॥व्याजुघोट तदैवैषो-कृतकृत्यः कुनृत्यवत् // 6 // अपश्यन्नंतरा किंचि-व्यावृत्तं च शरं निजं // पश्यन् स विस्मयातीव-रयं हयमचालयत् // 63 // कोट्टजित्ती सजाधारे / यो मूर्ध्नि इतस्ततः॥ करस्पर्शेन राझा स / विज्ञातः सर्वतः स्थितः॥ // 64 // वज्रपंजरनिक्षिप्त- सिंहवद्द दुःस्थितः स्थितः॥ नृपस्तत्र क्षुधातृमा-पीमितः पंच वासरान् // 65 // अचिंतयञ्च पार्डि-पापपादप एष मे // पुष्पितोऽस्त्यधुना नावि। फलं नरकवेदना // 66 // योजयित्वा करौ राजा। बताण विनयानतः // या काचिदेवता रुष्टा। / / सुप्रसन्नास्तु सा मयि // 6 // श्रुत्वेति तत्दणं तस्य / प्रत्यक्षीभूय यक्षिणी // याचख्यौ / / P.P-AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust .