________________ त्य परित्रम्य / जरतार्धमसाधयत् // 5 // तातेन सूरसेनेन / स्वपुरे रत्नमंदिरे // अर्धचक्री / / || समानीतः / कृत्वा प्रावेशिकोत्सवं // 6 // सर्व विद्याधराधीश-धराधीशसमन्वितः॥ वासुचरित्र देवपदं सोऽदा-दनिषेकविवेकवित् // // षोमशसहस्रभूपाः / सहान्यैः समुपायनैः // उन्ने उने शुने कन्ये / प्रमोदाझरये दः // 7 // समाते विधिना राज्या-निषेकाख्यमहोत्सवे // भूपान् सन्मान्य सन्मान्य / विससर्जाखिलानपि // नए // जयथानुजो देव-रथः पद्मनृपात्मजः // योऽस्ति तस्मै ददौ राज्यं / श्रीश्रीदपुरस्य सः // ए // दृष्ट्वा स्वपुत्रसाम्राज्यं / सूरसेननरेश्वरः // मन्यमानः कृतकृत्य-मात्मानं नितोऽनवत् // ए१ // प्राप्य सद्गुरुसंयोगं / प्रव्रज्याराज्यमाद्दे // को वा स्वावसरं सर्व / न जानाति विशुद्धधीः ॥ए॥ समुपदत्तया पट्ट-राझ्या सममनेकशः // झुंजानो जोगनंगी स। हरिरस्थायथासुखं // // ए३ // अन्यदा सा महादेवी / खप्ने स्ववदने विशत् // अधाशीदीरपाथोधि-युगं कहोलसंकुलं / / ए // प्रबुद्धा सा पुरः पत्युः / स्वप्नमेतन्यवेदयत् / / सोऽप्याख्यत्तत्फलं पुत्रयुगलं ते भविष्यति // एए // इति वाक्यात्प्रहेष्टाया-स्तस्याः कुर्दिसरोवरे // पुष्पसिंहरत्न- || PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust