________________ বলি तुष्टोऽहं वृणु नो वरं // देवदिन्नोऽवददेव / तवांते तिष्टतादयं // 50 // पुनः स्नानं जले कृत्वा / ऊपो निष्कंपमानसः॥ सोऽदादग्निमये कुंडे / किं दुःसाध्यं महीयसां // 21 // पुनर्यदस्तमुध्धृत्य / सत्यवागित्यनाषत // पुनर्वृणु वरं खैर-मग्रणीर्गुणशालिसु // 25 ॥स प्राह तावदेषोऽपि / जांमागारेऽवतिष्टतां // ततः स विहितस्नान-स्तूर्ण वदन्यंतरेऽपतत् // 33 // तत उ. धृत्य तं यदो / वरं वरतरं ददौ / तमपि स्थापयामास / यदस्यैव स सन्निधौ // 24 ॥उत्पतंतं तथा कर्तुं / पुनस्तमवदत्सुरः // जो देव दिन्न ते सत्व-ममर्यादं पयोधिवत् // 25 // परं परिमितैवास्ति / मम शक्तिर्महाशय // अथ प्रसादमाधाय / साहसं संवृणु स्वकं // . // 26 // वरत्रयं गृहाणं त्वं / ततो मामतृणं कुरु // देवदिन्नोऽवदद्यद / सादात्वं वीक्षितो यदि // // तन्मेऽपरप्रार्थनीयं / किं वा वेविद्यते वद // तेनोक्तं मा विलंवस्व ।प्रार्थयस्व स्व. मीप्सितं // 27 // देवदिन्नोऽवदत्तर्हि / वरेणैकेन देहि मे // कन्या अनन्यसामान्य-मान्या देव स्त्रियामपि ॥ए॥हितीयेन त्वयेतव्यं / ममांते स्मृतिमात्रतः // तृतीयेन च मे देहि / विद्यां गगनगामिनीं // 30 // तत्क्षणं यदराजोऽदा-त्तदार्थितमपि त्रयं // विवाहोत्सवसाम . . P.P.AciGunratdasuriM.S.. Jun Gun Aaradhak Trust