________________ जीत्या ति तरणिर्ननाश रजनी जझे च तारांकिता // 55 // इति तं जूपतिं स्तुत्वा / विप्रः प्रो व्यजिज्ञपत् // नखमध्ये विशेल्लोकः। खार्थसाधनहेतवे // 53 // ते संति बहवो ये तू-पकारिएयुपकारिणः॥हित्रा एव परं ते ये-ऽपकारिएयुपकारिणः // 54 // दुष्टस्याप्याश्रिताः संतः। संतः संतोषदायिनः // बेतुकामस्य किं बायां / न कुर्वति महीरुहः // 55 // प. यसा शीतलेनापि / ताप्यमानेन तप्यते // परं सत्पुरुषेणेह / कणमात्रं नहि क्वचित् // 56 // कोपः संयमते नूनं / प्रणामांतो महात्मनां // तत्दमख नराधीशा-पराधं निर्मितं मया // 57 // अजिरामगुणग्राम-ग्राममेकं प्रदेहि मे // प्रतिपन्नस्य वाक्यस्य / महांतो नान्यथाकृतः // 7 // यत उक्तं-प्रतिपन्नानि महतां / युगांतेऽपि चलंति नो. // अगस्तिवचनादको / विंध्योऽद्यापि न वर्धते // एए // एवं सविनयं वाक्यं / श्रुत्वा पद्मावतीसुतः॥ प्रसन्नहृदयोऽवादी-दुदारो दानशौंमधीः // 61 // ग्रामो वा नगरं वापि / यसोचते हिजोत्तम // तद्याचस्व निराशंकं / तुन्यं दास्यामि याचितं // 6 // अथ विप्रः सचेतोंत-रिति चिंतां चकार सः // नायं देशः स्वकीयः स्या-त्तस्मान्न खजनोऽत्र मे // 3 // स्वदेशवासिनो || P.P.AC. Gunratnasuri M.S. ' Jun Gun Aaradhak Trust .