________________ 56 पर नूनं / पछिणोऽपि मनोरमाः // न पुनः परदेशीया। बांधवा अपि बंधुराः // 64 // स्थान ज्रष्टमनुष्यस्य / प्रसूनस्येव जायते // विनिपातो न मोक्तव्यं / तस्मात्स्थानं निजं सदा // 65 // चरित्र|| उक्तं च राजा कुलवधूर्विश्रा-नियोगिमंत्रिणः स्तनौ / स्थानत्रष्टा न शोनंते / दंताः केशा // नखा नसः // 66 // तेजखप्यधिपो न स्या-दात्मवर्गविवर्जितः // ज्योतिष्कनायकश्चंद्रो। न पुनर्जानुमान् मतः // 6 // एकाकिनो हि संतापः / समर्थस्यापि जायते // त्यक्तेन ग्रहतासधैः / कि नादित्येन तप्यते // 6 // गुणैः सर्वकल्पोऽपि / सीदत्येको निराश्रयः // अनय॑मपि माणिक्यं / हेमाश्रयमपेक्षते ॥६ए // मदीयाः खजनाः संति / तथैव भवनं मम // श्रीमचंपापुरीदेशे। विद्यते नात्र किंचन // 70 // अतृर्षिज इत्येवं / विचिंत्योवाच भूपति // महाराज यदि ग्रामं / मह्यं दास्यसि याचितं // 1 // तदा चंपापुरीदेशे / ग्राममेकं प्रदेहि मे // ततस्तव प्रसादेन / तत्र स्थास्यामि सौख्यत्नाक् // 7 // यद्यप्येष न देशोऽस्ति / तवाझाप्रतिपालकः // तथापि बलिनां नैव / परदेशा हि कश्चन // 3 // तत्प्रसीद प्रजा|| नाथ / पूरयस्व मदीप्सितं // असंजाव्यापि यांचा स्या-न्महत्सु न हि निष्फला // 4 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust