________________ चरित्र अश्वस्त्वदृष्टपूर्वोऽसौ / वाक्याद्यदोऽवगम्यते // राक्षसोऽसौ नवेञ्चेत्त-विश्वासो न विधीयते | // 26 // धनधान्येन संपूर्ण / पुरं दृष्टं मया पुरा // अदृष्टपूर्वसंस्शने / न जानेऽयं क्व नेष्यति // 57 // अथवा वचनं तस्य / नरस्य न नवेन्मृषा // अथवा दैवती मायां / को वा वि. ज्ञातुमीश्वरः // 27 // इति संदेहसंदोह-दोलांदोलितमानसः // गिरेरिव महालोष्टो / य पृष्टात्पपात सः // एए // अनंगसेनमादाय / सा लक्ष्यं गृध्रपक्षिवत् // उड्डीय स्वाश्रयं नीत्वा / शूलायामध्यरोपयत् // 60 // देवताशक्तिमाहात्म्या-गाद्यदानुगामिनी // द्वितीयं पुनरेत्याहा-जितसेनं जितेंद्रियं // 61 // अथ नाथ कथं जावी। बांधवस्ते त्वया विना // सुखीस्यात्कुमुदं किं वा / विना कुमुदबांधवं // 6 // एकोदरसमुत्पन्न-देहयोमरणं हहा // जारंमपदिवनावि / नवतोर्जिनचेतसोः // 3 // मूढो न मन्यतेऽन्योक्ति / न जानाति स्वयं पुनः ॥राक्षसे कुरुते श्रकां / किं हा दैव करोम्यहं // 64 // तस्या इत्यादिवाक्येन / चलितं नो मनो मनाक् // उन्मूलिततर्वायुः / कि मेरुमपि चालयेत् // 65 // अयं हावैरजिन्नोऽपि नेत्स्यते नापकाकृतेः // अन्नेयमपि पानीयैः / स्वर्णमग्नेऽवीनवेत् // 66 // विचिंत्येति स्फु- / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust