________________ प्रत्येक स्तहिंविधशिक-स्तपः कुर्वन् सुदुस्तपं // अवापमवधिज्ञानं / गुरुसेवापरायणः // ए // // ज्ञात्वा गुणधरं ताव-दात्मीयमुपकारिणं // गुरुमापृच्च्य धर्मार्थ-बोधनार्थमिहागमं // ए३॥ चरित्रं जो जो जव्यंजना मनांगपि मनः कृत्वैकतानं निजं / यूयं संशृणुतोच्यमानमधुना तत्वं मया किंचन // रत्नहीपमिवाप्य मानवनवं संसारसिंधौ चिरीत् / मिथ्यात्वादिकपर्दसंग्रहपरा निमति मा निःफलं // ए४ // देवा जिनेडा गुरवो मुनींद्र / धर्मो जिनेउप्रेतिपादितश्च // एतत्रयं यः कुरुते स्वचित्ते / लोकत्रयाधिपतिर्भवेत्सः // ए५ // इत्यादिदेशनां श्रुत्वा / प्रबुद्धा सकला सजा // कैश्चिनागवती दीक्षा / जाग्यवङ्गिः समाददे // ए६ // रांझा च गुणचंप्रेण / तथा गुणधरेण च // तैर्वादशनियुक्तं / श्रीसम्यक्त्वमुपाददे // एy // सवरेतपात्तं स्वं || / पालनीयं दृढाशयैः // इत्युक्त्वा दीक्षितैः साकं / विजहारावनौ मुनिः॥ ए७ // कुरुतेऽथ नृ पो धर्म-मुन्नयन् जिनशासनं // तथैव सकलो लोको / जिनधर्मरतोऽनवत् // एए // प्रातः श्रीजिनमंदिरेषु सकलो लोको जिनान् वंदते / मध्यो परिधाय धौतवसनान्यन्यर्चयत्यन्व॥ 6 // षोढावश्यककर्म कर्मनिपुर निर्माति निमोयक स्तस्मिन् धर्मपरायणे नरपतौ जज्ञे || . P.P.AC.Gurvatnasur M.S Jun Gun Aaradhaku