________________ प्रत्येक सः॥ 300 // न रोचते च मच्चित्ते / खेचरो गुणवानपि // चंशोऽप्यर्कानुरक्तानां / पद्मिनीनां न हर्षकृत् // 1 // अंजलिर्विहितस्तेऽयं / जज मुंच कथामिमां // खेचराधमनामापि / कर्णचरित्रं शूलं करोति मे // 2 // तन्निश्चयमिति ज्ञात्वा / कुमारेणेति चिंतितं // मयि प्रेमानुबंधोऽस्या 171 / वज्रलेप श्व स्थिरः // 3 // तदात्मानं स्फुटीकृत्य / सुस्थामेतां करोम्यहं // अनर्थे विहिते पश्चा-त्पश्चात्तापो नविष्यति // 4 // जणिता साथ हे जझे / त्वमौषध्या द्वितीयया // विहिते तिलके नूनं / स्वनावस्था नविष्यसि ॥५॥तयोक्तं तर्हि कुवं / ततो निःकास्य पं. जरात् // विधाय तिलकं तेन / नारीरूपा विनिर्मिता // 6 // कुमारस्तां पुरो दृष्ट्वा / चिंतयामास चेतसि // दृशी मानवी तर्हि / देवलोकेऽधिकं किमु // 7 // नणितं च कुमारेण / चे. त्वं वदसि तहं // मेलयामि स्वपित्रोस्त्वां / शक्तिरस्तीदृशी मम // 7 // आह सा जो महाजाग / मम जर्तापहृतो यदि // जविष्यामि तदा पित्रो-स्तत्रस्था ह्यतिदुःखदा // ए॥ जायते सह दैन्येन / वर्धते वरचिंतया // निरपत्या पतित्यक्ता / पुत्री पित्रोः सुदुःखदा // 1 // / / तस्मानर्तुरलाने मे। योग्यं मरणमेव हि // गत्वा जननीपित्रोः किं / पुःखदात्री जवाम्यहं P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun AaradhakTrust