________________ श्व // 53 // राज्य सुमतिनानेन / दत्तं चानुमत्तं पुतं // सूरसेनेन स्नेहेन / त्वया चांगीकृतं मुद्दा // 14 // तन्मे त्रयोऽपि निग्राह्याः। परं दातमिदं हि वः॥ वारमेकं विमुच्यते-ऽत्यंतमप्यपराधिनः // 25 // अतःपरं परं राज्यं / परित्यज्य बजेरितः ॥कन्या समुदत्ता चाकतव्या तदुपायन-॥ 56 // अन्यथा निग्रहीष्यामि / जवंतमपराधिनं // समं समेस्य भुपालैर्जरतार्धनिवासिनिः // 57 // तातस्त्राता न मंत्री च / शवंतमप्युपस्थिते // सिंहे कर्षति वालं स्वं / शृगालैः किमु जायते // 7 // सर्वैः समीहते स्थाने। स्थातुमुच्चैस्तरे न हि // परमुच्चैर्गतो नीचः / सह्यते नेह काकवत् // एए॥ त बाला किंधा बालो। माभूगः पु. सदितः // जीवनिः प्राप्यते सर्व। पुना राज्यांगनादिकं // 6 // इति पञ्झनृपादेशं / तोनिदिश्य तस्थिवान् // हरिषेणस्तदावादी-जुकुटीनीषणेक्षणः // १॥पूत ते न विचारक्षः / खामी कामी हि केवलं // परिणीता परेणैतां / कथं कामयतेऽन्यथा // 6 // अदत्तं स्वा। मिना राज्यं / वांबन्नन्यायकृत्खदु // चौरो जारः कथं चाहं / योगदत्तं यमाप्तवान् // 3 // | अनयो राज्यांगनयो-यदि वांलां विधास्यति // सोऽतःपरंतदा तस्य / दास्ये शिक्षा यथो- || PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust