________________ चरित्र पोमा त्युत्तमाः // 5 // निरीहोऽपि गृहाणेति / जल्पस्तं बहु मानयन् // विद्याधराधिपो विद्यां / / प्रददौ वहुरूपिणीं // 6 // वायुवेगः प्रियायुक्तो / गगनाध्वनि सोऽचलत् // इतरोऽपि रत्नविद्या | |--कलितश्चलितोऽग्रतः // 7 // लक्ष्मीपुरपुरं प्राप्तो। वेश्याकामलतागृहे // मुंजानो विषयानेष / वासरानत्यवाहयत् // 7 // दत्तं पूर्जितं वित्तं / सर्वं तस्यै माणि विना // अन्येार्याचितं किंचि-तया नादादनावतः // // // कुहिन्या चिंतितं वित्तं / नास्य पार्श्वेऽस्ति किंचन // अधुना याचिंतं चापि / नार्पयामास यहनं // 10 // चंप्रश्चंडिकया हीनो। धनेन रहितः पुमान् // पत्रैश्च विकलो वृक्षो / विवाय श्व दृश्यते // 11 // परमद्यापि सहाय-काय एष निरीक्ष्यते // तबोधयामि सर्वांग-मव शिष्टमुपाददे // 15 // कुहिनी चिंतयित्वेति। सुप्तं गुणधरं निशि // शोधयित्वाग्रहीद्रत्नं / यत्नेनापि सुरक्षितं // 13 // तत्स्थाने कर्करं क्षिप्त्वा / कृतकार्याथ साखपत् // नन्निद्रः सोऽपि तन-मपश्यन् व्याकुलोऽजवत् // 14 // सोऽचिंतयत्सलोनेय-मक्का मे रत्नमग्रहीत् // परमेतस्य पापस्य / दर्शयाम्यचिरात्फलं // 15 // / धैर्यमेवं समालंब्य / सोत्कर्षामर्षवानपि // पूर्ववत्सुप्रसन्नास्य-स्तदिनं तु व्यतीतवान् // || PP.AC.Gunratnasuri M.S.