________________ पो // 16 // विचक्षणानामिदमेव लक्षणं / यहक्षणीया न जति कस्यचित् // अत्यंतरुष्टा अपि / / निष्टुराक्षरं / वदंति वाक्यं न हि येन कुत्रचित् // 27 // स कामलतया साकं / रजन्यां वासमंदिरे // सुष्वापापश्चिमे यामे / बोधितो रत्नचिंतया // 27 // रत्नोपायान् स्मरन् विद्यां / सस्मार बहुरूपिणीं // सिंहरूपं तया कृत्वा / गृहछारि स्थितो नदन् // 29 // प्रबुझा तध्ध्वनिं श्रुत्वा / दृष्ट्वा कामलताथ तं // करालं लंबलांगूलं / जीता संमूर्छितापतत् // 20 // अ.. थो प्रनाते संजाते / सुताऽनागमशंकिता // अका तबुझये प्राप्ता / द्वितीयां गृहभूमिकां // // 1 // निश्रेणीसं स्थितैवैषा / दृष्ट्वा सिंहं स्खलत्पदा // तथाऽपतद्यथा सर्वे / पतिता वद. नाउदाः // 2 // सा किंचिदविचार्यैव / तथैव रुधिरारुणा // समागात् श्वासपूर्णास्याऽरिमर्दननृपांतिके // 3 // स्खलत्पदा बनाणैवं / रद रक्ष दितीश मां // पंचाननेन मत्पुस्त्री / पंचत्वं प्रापिता प्रजो // 24 // सर्व कथय वृत्तांतं / मा जैषीर्जव सुस्थिता // राझेत्या. श्वासिता साख्यत् / सर्व सिंहनवं जयं // 25 // चचाल भूप उत्थाय / कौतुकाकुलमानसः // // थागत्य तद्ग्रहे सिंहं / मंदिरोपरि दृष्टवान् // 26 // अरण्यवासिनो जीवाः। संजवंत्यपि || PP.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust