________________ जो स्तयोः // निर्गतोऽहं ततोऽब्राम्यं / पृथिव्यां त्वां विलोकयन् // 70 // मया ग्रामे पुरेऽरण्ये / त्वं त्रमतापि नेदितः // सांप्रतं पुण्ययोगेन / मिलितः कौतुकं दिशन् // 1 // तदितो गम्यचरित्रमा ते तात-पदपीतं प्रणम्यते // पिलोश्च क्रियते हर्षः / खजनः परितोष्यते // 7 // एवं गुण धरः श्रुत्वा / बृहज्रातुर्वचः पितुः // मिलनोत्कंठितो जातः / सायं गोरिव तर्णकः // 3 // सत्कृत्याश्वरथअव्यैः / सेवकादि प्रदाय च // विज्ञप्तो भूमिपालोऽथ / कथंचित्तौ विसृष्टवान् // 4 // चेलतुस्तौ पुरात्तस्मात् / कृत्वा साथै निजं नवं // अजस्रं च प्रयाणेन / प्राप्तौ श्री. पुरसन्निधौ // 35 // मनोरमण नद्याने / स्थितौ जोजनहेतवे // रसवत्यो रसोपेताः। सर्वाश्च प्रगुणीकृताः // 76 // तयोर्जाग्यादिवाकृष्टो / मासपणपारणे // चारणर्षिः समायातो / मायामोहविवर्जितः // 7 // तान्यां रोमांचितांगाभ्यां / शुद्धान्नं प्रतिलानितः॥ सोऽपि चित्तं च वित्तं च / शुद्धं ज्ञात्वा समाददे // // धर्मलानं प्रदायायं / पारणं कृतवान् कचित् // तौ च प्रचल्य संप्राप्तौ। हमेण निजपत्तनं // ए॥ पिता वर्धापनं // चक्रे। सर्वत्र नगरांतरे // हर्षाश्रुसिक्तसर्वांगौ / पितरौ तौ प्रणेमतुः // 7 // * मिलि. || P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust