________________ तयोक्तमर्जिता लक्ष्मी-बहीं तव गृहे मया // अथायमेव पुरुष / आजन्म शरणं मम // 6 // 'एवं तयोः समं वाक्यं / सुतोऽलीकप्रमीलया // श्रुत्वा व्यचिंतय चित्ते / कुमारः सारसाहचरित्रं सः // 7 // नूनं रतिविलासाया। मयि प्रेम निरुत्तरं // धनेषु पुनरकाया। युक्तमेतद् योश्एए रपि // // कथंचित्पूरयाम्यस्या / धनदानेन वांडितं // ध्यात्वेति निशि तहानगराद. पि निर्ययो / ए॥ ब्रमन् भूमौ महारण्ये ---ऽन्यदैकत्राशृणोदयं // ध्यायन् धनार्जनोपायं / चतुर्णा कलहं नृणां // 10 // तेषामन्यर्णमन्येत्य / सोऽपृहत्केन हेतुना // जवंतः कलहायंते / ततस्तैरिति जटिपतं // 11 // चत्वारोऽपि वयं चौरा / वसामोऽत्रैव कानने // एकोऽत्र नर थायासी-द्विद्यासाधनदेतवे // 15 // षद्भिर्मासैघनायासैः / सिझा विद्यास्य नूस्पृशः॥ प्रत्यक्षीभूय देव्यस्मै / वस्तुत्रयमिदं ददौ // 13 // तत्रैकं पादुकायुग्मं / कंथा लकुट इत्युत्ने // तेषां प्रनावमित्यूचे / देवता स्वमुखेन सा // 14 // पादुकाभ्यां गतिव्योंन्नि / लकुटेनारिनिजयः // दीनाराणां सहस्रं च / दत्ते कंथा दिने दिने // 15 // अनिधायेत्यदृश्याभू-देवी संसाधकोऽथ सः // अवशिष्टं विधि सर्व / कर्तुमारब्धवान् पुनः // 17 // तस्मिन् व्याक्षिप्तचे- / / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust