________________ प्रत्येक % 3ES | कार्य सहर्षेण / रत्नसिंहस्य दर्शितः // निश्चेष्टः काष्टवत्तेन / नीयमानः सतापसैः // 5 // जीवतं लक्षणैत्विा / तं जलैर्मत्रसंस्कृतैः // यसिंचत्स तथा सज्जो / यथाजायत सोऽचिरात् // 23 // उत्तस्थौ प्राप्तचैतन्य-स्तदा कुलपतिर्वदन् // किमेतदिति संत्रांतो। विस्मयस्फारलोचनः // 24 // अमंदानंदसंदोह-जलदांकुरितांगकैः // तापसैः सर्वमाख्यायि / स्वरूपं पु. लकछलात् // 25 // अनेन नररत्नेन / जवानुजीवितोऽधुना // जल्पनिरिति तैरये। रत्नसिं. हः प्रदर्शितः // 26 // अथ सुस्निग्धदृष्टिस्तं / निन्ये कुलपतिर्निजं // श्राश्रमं सांजसं चाह। धन्यस्त्वं पुरुषोत्तम // 17 // परेषामुपकाराय / जन्म युष्मादृशां सतां // विधात्रा विहितं तेनो-चितं कर्म तवेदृशं // 27 // संति संतः कियंतोऽपि / तेऽत्र फनसवृक्षवत् // दिशंति फलमामूला-सरसं देहपुष्टिकृत् // श्ए // राज्यं करोषि यत्र त्वं / नगरं तत्किमुत्तमं // प्रशस्यः स प्रदेशः को। यमनुप्रस्थितो जवान् // 34 // के वर्या नृपते. वर्णा / गुंफितं तव नाम यैः॥ पुष्पमालेव लोकेन / ध्रियते कंठकंदले // 31 // ततो जनो रत्नसिंह-स्वरूपं सर्वमन्य|| धात् // ततः कुलपतिरिति / प्राह प्रमुदिताशयः // 35 // सर्व विद्याधराधीश / निःसर्गातुः || ' P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust