________________ // मत्स्वामिन्या मनो हृत्वा / कुमारः कुत्र यात्यसौ // 37 // एवं विचिंत्य तत्रागा-त्कुमारो यत्र तिष्टति // स लात्वा खटिकां काव्यं / कर्तुमारब्धवान्नवं // 30 // कुमारस्यापतद्धस्तात् / ख· चरित्र व्य लिखिते सति // यावत्प्रसारितस्तेन / करस्तद्ग्रहणेबुना // 35 // तावत्प्रसादनित्ति१४६ स्था। चलिता चित्रपुत्रिका // आदाय च खटीखंमं / नत्वा तस्मै समार्पयत् // 40 // एतद्द कुलता दृष्ट्वा / साश्चर्या निकटं ययौ // वाचयित्वा च तत्काव्यं / सा सत्वरपदा मुदा // 2 // आगता कन्यकापावें / स्वरूपं च निवेदितं // कौतुकाकुलिता तां चा-पृवत्कनकमंजरी // // 42 // सखि यविखितं तत्र / तेन तत्सि नाथ वा // वेनीति कथयित्या सा / तं श्लो. कमपठत्तदा // 3 // अनीहमानोऽपि बला-ददेशझोऽपि मानवः // कर्मणा नीयते तत्र / यत्र तत्फलमश्नुते // 45 // सा विज्ञाततदर्थाथा-वदद्ददलतामिति // सखि मन्ये फलं किंचि-तस्यासन्नं नविष्यति // 45 // विहस्य सा सखी प्राह / किं फलांतरकल्पनैः ॥मुख्यं त्वत्परिणयनं / फलं तस्यावगम्यते // 46 // रूपलावण्यसंपन्ना / सलीला शीलशालिनी // // त्वत्सदृदा हि गृहिणी / विना पुण्यैर्न लज्यते // 4 // श्रुत्वेत्यानंदिता चित्ते / जयसेननृपा- / / PP.AC. Gunratnasuri M.S. ' Jun Gun Aaradhak Trust