________________ १३ए किंविधाः // 45 // अस्या दास्या अपि पुरो। दासीवनांति ताः स्त्रियः // जव्येन्योऽपि हि जव्यानि / संति वस्तूनि विष्टपे // 13 // तत्तासां नागकन्याना-मंगसंगं करोम्यहं ॥ध्यात्वेति भूपतिः प्राह / तन्मार्ग में प्रदर्शय // 44 // दिव्यस्त्रीदर्यमानाध्वा / स समुत्तालमानसः॥ एकं पातालविवरं / प्रविवेशावशेंजियः // 45 // तस्यादं सुमतिमंत्री / मयेति नणितो नृपः // प्रस्थानं न तव स्थाने / स्थानेऽस्मिन् नीषणे प्रनो // 46 // यतः-धातुवादे तथा द्यूतेंजनसिकौ रसायने // विवरादौ प्रवेशे च / देवे रुष्टे मतिनवेत् // 4 // अन्यच्च त्वमपुत्रोऽसि / राजन् राज्यं त्यजस्यदः // निराधारं कथंकारं / प्रवेशोऽत्रोचितो न ते // 4 // इत्यादिना. नुशिष्टोऽपि / मोहधूर्तवशीकृतः॥ सोऽगमद्विवरस्यांतः / कृतांतेन कटादितः // 4 // अथासी. त्तस्य शस्यास्या। देवी जुवनसुंदरी // तया सह मया चक्रे / संकेतो यजतो नृपः // 50 // पातालमंदिरादेष / को वेत्यायाति नाथवा // यदि ते जायते पुत्री / प्रकाश्यः पुत्र एव हि // 51 // केवलज्ञानिनं साधु / ततः पृष्ट्वा कमप्यहं // करिष्यामि समं साध्यं / परिणाममनोरम // 55 // तत्रैकदा शुन्जध्यान-वह्निदग्धमलेंधनः // तपोधनः प्रापदेकः। केवलज्ञाननास्करः / -P.P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust