________________ या कार्य--मैतन्निर्मातुमर्हसि // 31 // थानेष्याम्यचिरादेव / देवेति पतिपद्य सः॥ देवदिन्नो || | गृहं गत्वा / यक्षायाखिलमालपत् // 35 // निरापायैरुपायैस्तै-न रोगो विनिवर्तते // सान्निचरित्र || पातिकरोगः किं / प्रशाम्येन्मधुरौषधैः // 33 // अधुना तं हनिष्यामि / सस्मितं यद इत्यव३७ क् // न नेति कृपया चंद्र-यशःपुत्रे वदत्यपि // 34 // स तस्य रूपमाधाय / धराधिपतिसनिधी // एकां दिव्यरूपां नारी ।कृत्वा धृत्वा करेऽगमत् // 35 // दीप्यमानं रत्नमेकं / नूमिपाय समार्पयत् // उवाच च महाराज / नागलोकेऽजवं गतः // 36 // त्वदीयसेवकत्वेन / मया निर्नयचेतसा // शेषराज पदा हत्वा / रत्नमेतदुपाददे // 37 // श्त्युत्कृष्टं बलं दृष्ट्वा / मयि पातालकन्यकाः॥ जझिरे सानुरागास्ता। मयैवं जणिताः पुनः // 30 // अस्ति लक्ष्मी पुरखामी / लक्ष्मीदेवनरेश्वरः // गुणानामालयो लक्ष्मी-विनिर्जितपुरंदरः ॥३ए॥ तस्यास्मि नृत्यलेशोऽहं / ततस्त्वय्यनुरागतः // मया सममिमां दासीं / प्रेषयामासुराश्रुताः // 4 // एतया सह है नाथ / समेतव्यमिह त्वया // इति विज्ञापितं तेऽस्ति / तानिः सर्वानिरादरात् // | // 41 // इति श्रुत्वा देवदिन्न-प्रियासु रतिमत्यजत् // यासामेतादृशी दासी / ता नविष्यंति || HIPPEAC,Gunratnasurilo.. Jun Gun Aaradhak Trust