________________ प्रत्येक समुपाददेः // श्राझधर्मः शर्मदायी / सम्यक्सम्यक्त्वपूर्वकं // 25 // इति कृत्वा धर्मला- || नं.। धर्मलाजं प्रदाय च // उत्पपात मुनिव्योंन्नि / सतृष्णं पश्यतां नृणां // 30 // सागरदत्त चार कुमारोऽपि / प्रियध्वजनृपाग्रहात् // तत्र स्थित्वा कियत्कालं / चचाल सह मंत्रिणा // 31 // बज़न् विमानमारुह्य / दणात् श्रीवहनं पुरं // प्राप राजा देवदिन्नो / मुमुदे तस्य दर्शनात // 35 // दानसंतोषितास्तोक-लोकमुत्सवपूर्वकं // साकं सागरदत्वेन / स्वपुत्रीं पर्यणाययत् // // 33 // दंडेनेव पताकाया / गंगाया श्व वार्डिना // सुपर्वशैलमूलायाः कल्पकल्पणेव च // 34 // मुद्राया श्व रत्नेन / विष्णुनेव च स श्रियः // जानुमत्यास्तेन योगः / लोकैः कैः कैर्न वर्णितः // 35 // युग्मं ॥अथ राजा कुमाराने / वक्तुमारब्धवानिति // कुर्वतोऽत्र सुखंराज्यं / धनः कालो ममागमत् // 36 // हरेः प्रसादानिश्चित-चित्तोऽहं सदने स्थितः // अश्रौषमन्यदा दाह-करी पित्रोः परोक्षतां // 37 // तदैवोत्पन्नवैराग्य-चेतसा चिंतितं म. या // धिक् संसारमसारं धिग् / मोई धिग्ममतामिमां // 37 // पुत्रं राज्ये निधायाशु / प्रनज्यामाददाम्यहं // जन्ममृत्युवियोगादि-दुःखांतो जायते यतः // 35 // मय्येवं चिंतयत्ये.. "P.P.Ac. Gangathasun M.S... Jun Gun Aaradhak Trust