________________ प्रत्येक 39 जं प्ररोहाय / न पृथ्वी सलिल न च // सर्वेषामपि संयोगा-प्ररोहति तरुर्गुरुः // 1 // ए- // वैविधानि वाक्यानि / प्रजन्नं संस्थितोऽशृणोत् // करकंकुस्तदैवैको / ब्राह्मणोऽपि महामतिः चरित्र // 6 // अथ साधुम्यं वापि / विजहार महीतले // तृणे स्त्रैणेऽपि हि स्वर्णे / साधवः स. | मदृष्टयः // 3 // श्यं भूमिर्मदीयास्ति / तदियं वर्धतामिह // पश्चादेव गृहीष्यामि / मुनिनोक्तप्रमाणकां // 64 // एवं विचिंतयन् सुस्थः / करकंमुः स तस्थिवान् // महांतः सर्वकायेषु / तस्थुरौत्सुक्यजाजनं // 65 // युग्मं // अर्कोऽप्युदेति वारुण्यां / चलत्यपि सुराचलः॥ ज्वलनोऽपि नवेचीतो / हिमवज्ज्वलनी नवेत् // 66 // कदाचित्सागरांजोऽपि / मर्यादामतिवर्तते // परं न साधुवाक्यानि / प्रचलति कदाचन // 67 // अनेन मुनिरत्नेन / दंगरत्नं प्ररूपितं // तदस्य ग्रहणे यत्नं / करोम्यचिरकालतः // 6 // चतुरंगुलमेतस्य / वृतिं यावत्प्र- // तीक्ष्यते // श्रेयांसि बहुविनानी-तिहेतोस्तन्न युज्यते // ६ए // साधुवाक्यांजनेनायं / निधानमिव दृश्यते // पश्चादजाग्ययोगेन / मायं कदापि दृश्यतां // 70 // केनाप्यज्ञानतो दंको। मायं चेछिद्यतेऽथवा // अपि चिंतामणीरल-मझानां कर्करायते // 31 // सांप्रतं गृह्यतेऽयं | .. P.P.AC. Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust