________________ प्रत्येक राज्यं परित्यज्य / प्रव्रज्याराज्यमाददे // 4 // एवं यावत्समारूढो। मनोरथरथं नृपः // व नपालः समागत्य / तावदेवं व्यजिज्ञपत् // 5 // श्रीधर्मघोषसूरींद्रा / श्व चंदा अवातरन्॥ चरित्र || वने व्योम्नीव ताराभिः / साधुराजिलिरावृता // 6 // इत्याकर्य नराधीश-स्तोषितः पारि तोषिकं // तस्मै सर्वांगाजरणा-दिकं दानं ददौ मुदा // 7 // सपुत्रः सपरीवार / उद्यानमचलन्नृपः // चिंतयन्निति सानंदं / सिको मम मनोरथः // ॥राजेंद्रादवतीर्य नक्तितो / जूमीपति—मितले बुग्न् बुग्न् // आगत्य वारत्रितयं प्रदक्षिणां / दत्वा गुरोरं हियुगं नमो. ऽकरोत् // // श्रीधर्मघोषसूरीजः / प्रारेने धर्मदेशनां॥ जो जो जव्या जवांभोधि-रपारोऽयं दुरुत्तरः // 10 // तत्र कर्ममहावाते-रितश्चेत्. त्रिजगजनः // मोहावर्ते पतेत्तर्हि / स विदध्यादधोगतिं // 11 // मोहव्याघ्रो जवाटव्यां / असते शीघ्रमंगिनः॥ आरोहति परं यो नो / जिनधर्मतरुं गुरुं // 15 // राज्यलक्ष्मीः समस्तेयं / चपला गजकर्णवत् // संध्यारागानुकारं || च / जीवानां जीवितं खलु // 13 // निजसद्मनि पद्मापि / याहोरात्रं न तिष्ठति // सा क॥ परगेहेषु / श्रीः स्थिरत्वं करिष्यति // 14 // सुखैकाकांक्षिणो जीवाः / सुखं तु सुकृतान-|| PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust