________________ . प्रत्येक मारस्तं / हृष्यंत सुरशेखरं // स्वतातपादपाथोज / मुंगीवत्पुष्पवत्यपि // प्राप्य प्रमुदिता || | जज्ञे / गलद्धर्षाश्रुलोचना // ए० // प्रवेशकमहं कृत्वा / दत्वा दानान्यनेकशः // प्रवेशितो नरेंजेण / कुमारो नगरांतरे // ए१ // पृष्टया पितृमातृभ्यां / पुष्पवत्या प्ररूपिताः // अवदाताः समे नर्तुः / श्रुत्वा तावपि विस्मितौ // ए // कियत्यपि गते काले / कलहंस्याथ कांतया // व्यापि विडया कांतः। स्वकीयः कांतया गिरा॥३॥ पुष्पवत्या व स्वामिन / पित्रोमें देहि दर्शनं // मेघवलमयोत्तापं / मझियोगदवोनवं // ए४ // ततो मदाग्रहपरो / दत्वा दानं व्यसर्जयत् // नृपः सोऽपि प्रियायुग्म-युतोऽचालीरपुरात्ततः // ए५ // प्रौढं विमानमारूढो / विद्याधरनरावृतः // कमलासनपूःपार्श्वे / स प्राप व्योनि संचरन् // ए६ // वने न्यवी विशत्सैन्यं / कलहंसी च सोऽवदत् // प्रिये मेलयितुं तातं / तवात्रैव समानयेत् // एy // ततः स विद्यया चक्रे / रूपं मत्तस्य दंतिनः // कानने क्रीमितुं चागा-देकाकी पुरपार्श्वगे // एy // कमलध्वजराजें-स्तावत्तत्र समाययौ.॥ मत्तं मतंगजं तं च / दृष्ट्वात्यंतं जहर्ष सः // गए // आरुरोद वशीकर्तुं / यावत्तं कमलध्वजः // तावदाकाशमार्गेण / तार्यपक्षीव सोऽचलत् // // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun.Gun Aaradhak Trust