________________ चरित्रं प्रत्येक उवाच जो महीपाल / त्वयैकैको नरोऽन्वहं // मम प्रेतवने प्रेष्य-स्तेन कथ्या कथा पुनः || // 15 // न वेत्स्याम्येव यस्याहं / कथाया अर्थमद्भुतं // तस्मादेव नरान्मारिः / सर्वथा न जविष्यति // 13 // अंगीकृतं नरेंखेण / सर्वथानिष्टमप्यदः // शेषपत्तनरदायै / ततो यद१३४ स्तिरोदधे // 14 // राजा च प्रगुणीभूतो। मारिस्तत्र न्यवर्तत // एकैकः पुरुषो नित्यं / प्रे ष्यते प्रेतकानने // 15 // रूपं बिजीषणं कृत्वा / तत्र यतः स्फुटो जवेत् // कथां पृबति नीतात्मा / कश्चिन्नाख्याति तां पुनः // 16 // तत वाहत्य खगेन / मानवं मारयत्यसौ // मृतेीतः समारेने / पलायितुमितो जनः // 17 ॥राज्ञा खसेवकैश्चम-निरुध्येतस्ततो ब्रजन् // जनः कारागृहे क्षिप्त / श्व तत्रैव रक्षितः॥ 17 // अन्यदा गृहपार्श्वस्थां / स्थविरां करुणखरं // रुदती करुणापूर्ण-चित्तो गुणधरोऽशृणोत् // 15 // स तस्या मंदिरं गत्वा / मातः किमिति रोदिषि // अकस्मादत्र कस्मात्त्वं / पृष्टवानिति सांजसं.॥ 50 // तयोक्तं पुत्र निर्ना ग्या / किं वदामि त्वदग्रतः // एक एवास्ति मे सूनु-राधारोंधस्य यष्टिवत् // 1 // अद्य // सोऽपि नृपादेशाद् / गत्वा प्रेतवने निशि // यक्केण मारितो नून-मशरण्यो मरिष्यति // 25 // - Jun Gun Aaradhak Trust . PP.AC.Gunratnasuri M.S. '