________________ হিম 234 // व्याघीमानेतुमुद्यतः॥ यावच्चलत्यसौं ताव-प्रत्यदो यक्षरामभृत् // 6 // अनाणीच म- || हानाग / तिष्ट त्वं जवनांतरे // त्वडूपेणैव सर्वाणि / कार्याणि करवाणि ते // 7 // इत्युक्त्वा स्थापयित्वा च / तमंतमंदिरं स्वयं // प्रीत्या तपमादृत्य / निरगानगराबहिः // 7 // अरण्यचारिणी स्वैरं / प्रसूतनवबालकां // गत्वा वने पुतं व्याघीं। यवश्वागीमिवाधरत् // ॥ए // क्रूराकारां धृतां कर्णे / बालकानुगतां स तां // आनिन्ये नगरस्यांत-पियन् नागरान्नरान् // ए // आश्चर्याघ्दनन्यस्त-हस्तमुन्मीलितेक्षणं // इदतेस्म स लोकेन / मुक्तमार्गेण पूरतः // ए१ // देवोऽयं देवदिन्नः किं / यदेवं विधवीर्यवान् // शृण्वन् समस्तपौराणां / वचश्चयमयं चलन् // ए५ // अचलेशालयं प्राप्य / स क्षमापालमालपत् // दुग्ध्वा दुग्धं पि. || बैतस्या / जव भूप निरामयः // ए३ // पुग्ध्वा देहि महानाग / राक्षेति प्रतिपादिते // जा. || जनेन तथा चक्रे / विस्मिते स सन्नाजने // ए४ // उत्कृष्टं तहलं दृष्ट्वा / जीतस्तत्पीतवान्नु पः // उक्तवांश्च महासत्त्व / गत्वैनां मुंच कानने // ए५ // धृत्वेत्याकर्ण्य कर्णे ता-मरण्यांन्यां || विमुच्य च // देवदिन्नगृहेऽन्येत्य / वार्ता सर्वामचीकथत् // ए६ // राजापि विफलीभूत-- Guaratraso Jun Gun Aaradhak Trul