________________ || यत् // 7 // अथान्यदावनीपालो / वस्त्रेणावेष्ट्य मस्तकं // स मायामंदिरं तस्थौ ।वासमंदि- // रमंतरा. // 75 // मंदीभूतं नृपं श्रुत्वा-नाषणायाययुनराः // अन्यदा देवदिन्नोऽपि / तत्रा. गत्येत्यनाषत // 76 // मुक्तामयं शरीरं ते। हारवद्विद्यते विनो // समाधिसहितंचास्ति / 233 समाधिरहितं मनः // 7 // तेनावादि यदाद्यासं / दष्टो पुष्टतराहिना // तदादि पित्तयोगे न / तबिरोर्तिरियर्ति मे // // अमुं व्याधि निराकर्तु / वैद्या नुन्ना बजाषिरे। औषधैर्विविधैरेष / व्याधिश्वेत्तुं न शक्यते // ए // परं कथंचिदायाति / व्याघ्रीदुग्धं यदा तदा // मृगो मृगारिणेवायं / तेन पीतेन नश्यति // 70 // अस्मताज्ये त्वमेवासि / धीरवीरधुरंधरः॥ हारवन्मामपि व्याधि-वारिधी मनमुघर // 1 // स राजवचनर्निन्न-मानसस्तत्प्रपन्नवान् // एत्य स्वप्रेयसीपावें / स्वरूपं च तदुक्तवान् // 2 // व्यापि ज्ञातवृत्तानि-स्तानिः प्राणप्रियप्रनो // अस्मास्वासक्तचित्तोऽसौ / जवंतं हंतुमिछति // 3 // तदयं निर्दयो नित्यं / दत्ते ते दुष्टशासनं // गत्वा कथय नाथाथ / यदेतन्न हि सिध्यति // 4 // अचलापि चलत्येषा / / चलत्यपि सुराचलः // महतां प्रतिपन्नानि / न चलंति कदाचन // 5 // इत्युदीय महाचीयो।।। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust