________________ // कायोत्सर्गः स च ध्यानं / कुर्वस्तत्रावतिष्ठते // ए७ // अन्यदा धनसारोऽगा-स्वजनाम: || . . त्रितः क्वचित् // निश्यपश्यन् प्रियास्तस्य / तं मुनि मदनातुराः // एए // जजल्पुः स्निग्धवा- 1 क्यानि / चंगखांगान्यदर्शयन् // आलिंगनं ददुर्गाढं / कायोत्सर्गजुषो मुनेः॥ 40 ॥चित्र. 544 लिखितवत्काष्ट-घटितानः स संयमी // तिष्टतिस्म विचेष्टः सन् / जितकामा हि साधवः॥ // 1 // प्रजाते तेन जातेऽथ / समस्तास्ताः प्रबोधिताः // जगृहर्निश्चलं शीलं / गृहमेधिजनोचितं // 5 // धनसारो गृहायातो। मुनिसेवनतत्परः // परममाहतं धर्म-मर्जयामास सप्रियः // 3 // धनसारस्ततो भृत्वा / देवदिन्न जवान मृत् // तत्प्रिया वेगवत्याथा / विद्याधर्योऽनबन्नमूः // 4 // गुणसारप्रिया मृत्वा / गुणश्रीरिह जन्मनि // देवसुंदर्यभूदेषा / त्वदीयापूर्ववबना // 5 // पूर्वरागाहायुवेग। एतस्यामन्वरज्यत // पूर्ववैरानवंतं च / किप्तवान् जलधे| जले // 6 // पूर्वपुण्यानुजावेना-चिराजाज्यं लनिष्यसे // अवसाने समाश्रित्य / प्रज्यां शिवशर्म च // 7 // इति केबलिनः श्रुत्वा वचनं रजतोज्ज्वलं // सप्रियोऽपि देवदिनो। हा|| दशाणुव्रतान्पलात् // 7 // नत्वा मुनि निजं स्थानं / प्राप पापपराङ्मुखः // यदेणोत्क्षिप्य / .P.P.AC.GunratnasuriM.S.. .' Jun Gun Aaradhak trust