________________ चरित्रं तया किं ममैतया // ध्यात्वेति प्रणयिनी स / न जल्पयति नेकते // 7 // तया प्रयुक्तं प्र- || णया-हिनयं न प्रतीति // क्रमात्प्रवहणं प्राप। तीरं देमेण वारिधेः // // गृहीत्वा खखवस्तूनि / ययुः सर्वे पुरांतरा // धनसारः समित्रोऽपि / प्राप्तो निजनिकेतनं // नए // खपत्युरपमानेन / गुणश्रीनमानसा // चिंतयामास हा स्वामी / कुपितः किमकारणं // ए० // कारिता मंत्रतंत्राद्याः / सौनाग्योत्पत्तये तया // परं तैन गुणो जझे-साध्यव्याधाविवौषधैः // 1 // पृछतिस्मैकदा साथ / साध्वीः सौजाग्यकारणं // ता ऊचुर्नाधिकारो नो / न सां. सारिके विधौ // ए // परं सुखार्थिनी चेत्त्वं / तदा धर्म समाचर // सर्वकार्याणि सिध्ध्यंति / येनाचीर्णेन हेलया // ए३॥ रोहिणीकल्पवृदादि-विशेषेण प्रवर्तते // दो ग्यध्वांतवि. ध्वंसि-तपनातपवत्तपः // ए४ // साध्वीनां ताः सुधाकुख्या-तुल्याः पीत्वा सरस्वतीः // सध्या यथोदिष्टं / तप्यतेस्म तपस्तया // एए ॥श्तश्च धनसारस्या। मंदिरे सुंदराकृतिः॥ प्रपन्नजिनकल्पश्री-रागाधर्मधनो मुनिः // ए६ // उत्थाय धनसारेण / प्रतिपत्तिपुरस्सरं // // ववंदे स ययाचे च / चातुर्मासिकमाश्रयं // ए७ // स्वगृहैकप्रदेशे त-त्तस्मै तेन ददे मुदा || . PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust HA.