________________ प्रहरीका पीकामारो नृपः // ऊचे सा युवयोस्य / संगं नृपतिरीहते // 7 // तदायातं नरेन्मस्य / / / मंदिरेऽस्ति रहोऽधुना // तान्यामुक्तं कुलस्त्रीणां / युक्ता नान्यगृहे गतिः // 47 // एकाकी नृप एवात्र / कट्ये मध्यंदिने किल // आयातु येन नः खामी। तदा याति गृहाहहिः / 104 ए: // मुक्त्वा लोकेषु सुतेषु / तदा नियंजनं नवेत् // सूती श्रुत्वेति गत्वा च / राज्ञः सर्व न्यवेदयत् // 50 // उक्तं पण्यांगनाभ्यां च / खरूपमजयप्रितः॥ समग्रां सोऽपि सामश्री। चके तबंधनोचितां // 51 // तत्र नूपतिरेकाकी / ,पटाादितमस्तकः // आगाताव. ज्करिति तं / बध्ध्वा निजस्थेऽक्षिपत् // 55 // अंजयः प्राचलंदयो / उज्जयिन्याश्चतुःपथे // // चरेऽहं चंप्रद्योतो / बद्धो नीयेऽधुनामुना // 53 // इत्यादिकृतपूत्कारं / नीयते पहिलो ह्ययं // उपेक्षितमिति जनै-स्तमादायाजयो ययौ // 54 // अथाजयकुमारेण / नीत्वा राजगृहै पुरै // श्रीश्रेणिकनरेंद्राय / स प्रद्योतनृपोऽर्पितः // 55 // सोऽपि प्राह महाराज / किं कर्तव्यं तवाधुना // स ऊचे स्वगृहप्राप्त-स्यातिथे हिंधीयते // 56 // श्रुत्वेति श्रेणिकदमापः / परिणाय्य निजांगजां // अमुचत्वपुरं प्राप्य / तस्थौ प्रद्योतराट् सुखं // 57 // कियत्यपि / / P.P.AC.Gunratnasuri M.S.