________________ प्रत्येक यदि बध्वेतो / नये तर्हि मतिर्मम // एवं निर्जयचेतस्कः / सप्रतिज्ञोऽनयो ययौ // 36 // खतातश्रेणिकदमाप-समीपे स कियच्चिरं // विलंब्य परमं सार्थ / विधाय प्राचलत्पुरात् // 37 // क्रमेणोजयिनी प्राप / वस्तुस्तोमसमन्वितः // कृतरूपपरावर्तो / दधावजयमाभिधां // 3 // तत्र तिष्टन् जनं सर्वं / तोषयन् क्रयविक्रयैः // प्रासादसन्निधौ राज्ञो / निजस्थानं विनिर्ममे॥ // 35 // चंम्प्रद्योतनामानं / खनृत्यं महिलाकृति // कृत्वा चतुःपथे नित्यं / पुरोगमकारयत् / / 40 // अनादि घृतजामानि / शस्तवस्तून्यपातयत् // उठेगमकरोन्नित्यं / स नृत्यो ग्रहिलाकृतिः // 45 ॥श्रेष्टिनोऽनयमाख्यस्य / दाक्षिण्येन न तं जनाः // निघ्नंतिस्म किंतु गत्वो -पालनं श्रेष्टिनो ददुः // 42 // सोऽपि स्वयं समागत्य / बध्ध्वारोंप्य निजे रथे // अरेऽहं चं. मप्रद्योतो / बको नीयेऽधुनामुना // 43 // पाखंमिनो जनाः सर्वे / रे रे धावत धावत // फू. कुर्वतं तमादाय / स ययौ नगराबहिः // // इत्येतत्कुरुते नित्यं / मध्याह्नेऽजयमः सुधीः // अथ पण्यांगनायुग्मं / सहानीतं शुजाकृति // 45 // दर्शयित्वा निजं रूपं / चंकप्रद्योतभू|| पति // विमोह्य विज्रमैः सारैः / प्राविशन्निजवेश्मनि // 46 // तयोः पार्श्वे निजां इती। प्रै- || - PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust