________________ 1 रजूमौ विषवल्लीवन्नवा // सानीय पापा नगरस्य मानवा-नस्मिन् वने क्रूरमना व्यनाशयत् / / | // 76 // धनेषु धान्येष्वपि सत्सु पापा / वांडत्यसौ मानवमांसमेव // अत्येव मिष्टान्नमपास्य विष्टां / न रांसनः किं करजः शमी वा // 7 // नरान् समस्तानपि जदयित्वा / पुनर्बुजुक्षाकुलकुदिरेषा // विधाय रूपं नवकन्यकाया / मायावती तिष्टति नूपगेहे // // जलास्थलोछा समुपेत्य तस्या-मुन्निद्रमुख्यामनुरज्यते यः // अत्यल्पकालानते स मृत्यु-मलिनलि. न्यामिव गंधलीनः // ऽए // सुभोजनस्नानविलेपनाथैः / प्रपोष्य सा सप्तदिनानि यावत् ॥विनाशयत्यत्र वने मनुष्या-नजान् महायज्ञ श्व हिजाली // 70 ॥स्थलाध्वनाभूवमिहागतोऽहं। साश्चर्यनेत्रो नगरे मृगाजः // मां हावजावैः कपटस्वजावै / राक्षस्यरदद् हृदयं प्रतार्य // // प्रपोष्य मे सप्तदिनानि देह-माजंघम स्मिन् विपिने चखाद // क्षणादथोएष्यति जोक्ष्यते च / कायं महानंदकृतोऽपि शेषं // 2 // एवं स्वरूपं सकलं निशम्य / मुमूतुर्नीति वशंवदौ तौ // समीरणदेपणतो नरः स / आश्वासयामार कृपाप्रपानः // 3 // किं को प्यु. || पायो वरिवर्चि ताह-येनोत्कटासंकटतश्खुटिः स्यात् // तान्यां स पृष्टः पुनरेवमाह।स्वरे // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust