________________ कण कूपादिव निर्गतेन // // जयं जवद्या बहु नो विधेयं / यतोऽस्त्यरादिह तीर्थमेकं // || पीयूषवापीव मरुस्थलीषु / निदाघकाले सखिलप्रपेव // 5 // तत्रास्ति यदः किल धर्मराजो 14-दुष्टेषु सादादिक धर्मराजः // अत्रोपकारी हयरूंपधारी / समेत्यसौ सप्तमसतमेति // 6 // राजांगणाज्यर्णमुपेत्य यक्ष / उच्चैः खरेणेति करोति शब्दं // जलात्स्थलाधा य इहागतः स्या-स्पृष्टं समारोहतु सोऽवतीर्यः॥७॥ एषास्ति कन्या न हि किंतु राक्षसी / जनान् हनिष्यत्यमुरज्यः जोजनैः // निघ्नंति मत्स्यान् किमु मत्स्यबंधकां / आलोच्य मांसैबत नो उराशयाः // // यदोक्तमेवं वचनं निशम्य / राजांगणाद्यो मनुजोऽवतीर्य // तमश्वमारोहति साहसाय- खुटत्यतो दुर्घटसंकटोत्सः // नए // दिनध्यात्पूर्वमिहागतोऽनू-ड्रीधर्मराजानिधयकराजः // अथो पुनः पंचमवासरे स / समागमिष्यत्यनुराजवेश्म // ए // तत्पृष्टनागश्रयएं विधेयं / नार्युक्तवाक्ये हृदयं न देयं // बालानांध लजते न हस्ती / चेहस्तिनीसंगमलनमुखः स्यात् // ए१-॥ तत्पृष्टनागोपरि संस्थितान्नो / जनानुपद्रोतुमसौ समर्था // किमद्रि|| शृंगोपरि वर्तमाना-नाकामति क्रूरमति गारिः // ए // सा राक्षसी चाटुवचांस्यनेकशो।। .P. Ac. Guntatnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust