________________ क्येव देव दिन्न-स्तत्रादिनमनाः स्थितः // ए // जीवितव्यं च जव्यं च / कार्य स्यात्वामि नो यथा // हारनिःकासनोपायां-श्चिंतयामास रिशः // ए // दणांतरे यदराज / स म'चरित्रं नोरममस्मरत् // वाचा वकः स वै यद-स्तत्वणं तत्पुरोऽजवत् // एए // देवदिन्नो जगादेति / समानयः पयोनिधेः॥ मुक्ताफलमयं हारं / कुरु भूपं निराकुलं // 200 // ततो यतः दणात्दारां-बुधेरुत्दिप्य शक्तितः // हंसवकारमानीय / तस्य हस्तांबुजे ददौ // 1 // नवता प्र. तिपत्तव्यं / न कार्य नगरेशितुः // त्वत्स्त्रीषु मोहितो यत्स / त्वां निदंतुं समीहते // 5 // त्युदीर्य ययौ यदो / हर्षरोषसमाकुलः // आजगाम निजं धाम / श्चेष्टिमूरिमुव्हन् // 3 // प्रजाते भूपतेरते / समागत्य तमार्पयत् // जीवंतं तं समायांतं / दृष्ट्वा राजा चमत्कृतः॥४॥ हा दैव किमयं वैरी / पुनर्जीवनिहागतः // हनिष्यामि कथं हंत / हताशः शक्तिशालिनं // // 5 // इति चिंतातुरः श्यामी-भूतस्तस्थिवांश्चिरं // पापः कृतोपकारोऽप्य-पकारं कर्तुमिछति // 6 // कालांतरेऽवदइंजी। पतितोऽगाधनीरधौ // त्वयायं त्वरयानीतः / कथं हारो म| नोहः // 7 // सर्वत्रास्खलिता एव / त्वदीया देव सेवकाः // श्रेष्टिसूरित्युदीर्याथ / निजमा P.P.AC. Gunrainasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust