________________ पोस्त्वया न्यायानुवर्तिना // 24 // अथ चंजयशाः प्राह / किमेतद् पूत जल्पसि॥ रत्नभूतानि / || वस्तूनि / कस्य सत्कानि संति किं // 25 // यत्र पश्यंति कल्याणं / गुणिनं च धराधवं ॥त. बारित्र, त्रैवायांति रत्नानि / याश्चया नो बलान्न च // 26 // यथा तपनराजस्य / मंदिरे मित्रकुंजरः | // स्वयनेव समायात-स्तथायं मगृहेऽधुना // 27 ॥राज्यवृद्धिकरं हस्ति-रत्नं स्वयमु.. पस्थितं // कथं पश्चात्प्रदास्यामि / पूर्ण पुण्यमिवोज्ज्वलं // // न्यायोऽत्र हीयते नैव / ममैनं रदतः सतः // स्वयं तद्देशमायातो / यदसौ ध्रियते मया // श्ए // अथवा किमु यु. कोक्त्या / किं वा न्यायनिरूपणैः // युज्यते बलमेवैकं / तत्साध्यं ह्यखिलं जगत् // 30 // दूत ते वर्तते राझो / नाम किंचन चेलं // स तायातु सन्नह्य / गृह्णातु च निजं गज // 31 // ततो पूतोऽवदद् नूप / जमरूपो नवान्ननु // नमिराज्ञो न जानासि। बलमैंद्रमिवाधिकं // 35 // कंबलं परिधायाद्रि-कंदरासु दरातुराः // शेरते वैरिभूपाला / यस्य श. स्यतरौजसः // 33 // तृणमात्रं बलात्तस्य / रक्षितुं कः क्षमः क्षितौ // न्यायार्थ ज्ञापितोऽ|| सीदं / याञ्चेयं न पुनस्त्वयि // 34 // शृणु चंद्रयशो राजन् / हितमेतन्मयोच्यते // यस्याका-|| Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.