________________ || तन्मुंच समरारंजं / निर्दन करुणापर // परमामोदसंपादी / साधीयान् संधिरेव हि // 1 // दधिवाहनपाल-माक्रम्य ग्राममग्रहीत् // इति लोकापवादस्य / जयं कार्य न किंचन // 4 // चरित्र | सर्वथा स्वहितं कार्य / लोकः किं वा करिष्यति // नोपायः कोऽपि तादृक्षो / येन सर्वोऽनुर ज्यते // 53 // एकग्रामकृते नाथ / संग्रामः किं विधीयते // लाजालानौ विचार्या यै-ोने कायें हि यत्यते // 4 // उक्त च-पुष्पैरपि न योधव्यं / किं पुनर्निशितैः शरैः // युद्धे विजयसंदेहः / प्रधानपुरुषक्षयः // 45 // त्वयापमानितेनापि / न कार्यों रोषविप्लवः // अग्निना तापितं वापि / दुग्धं मधुरमेव हि // 46 // नमंति सफला वृक्षा / नमंति गुणिनो जनाः // दुर्जनाः शुष्ककाष्टं च / न नतिं कुरुते क्वचित् // 47 // इति मंत्री सुधानाजि-ग्नि'पं व्य जिझपत् // तावत्तद्देशवास्तव्य-लोकैरागत्य प्रत्कृतं // 4 // महाराजनवद्देशं / करकंकु. नरेश्वरः // अध्वंसिष्टेव निर्नाथं / मत्तेन श्व काननं // 4 // ततो जीताः प्रविष्टा स्मो। नगरेऽस्मिन् महीपते // ध्वांताराताविवायाते / कायरा व सद्मसु // 50 // निर्नाधानामिवास्माकं / वस्तूनि सकलान्यपि // मुषाण स नृपो हाहा / खामिनि त्वयि सत्यपि // 51 ॥क P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust