________________ चरित्र प्रत्येक मिपतयस्तिष्टंति सेवापराः // दोनं यांति विलोक्य यं सुरगणाः का मानवानां कथा। हा || हीनैः समशीर्षिकासममहो तेनापि निर्मीयते // 15 // का स्पर्धा लवतोस्तेना-हिना दई. रयोरिव // सर्पयोरिव तादयेणा-ग्निना शलजयोरिव // 16 // युवयोमरणायेयं / स्पर्धा पद्म२५१ | नरेंजुना // पदोगमः कीटिकानां / नूनं मृत्यव एव हि // // तिष्टतात्स स्वयं राजा। त्वं तत्सैन्यांतरागतः // बिंवृष्टिरिवाजोधौ / ज्ञास्यसे न ससैनिकः // // सेवका अपि मोदयंति / त्वां तेनोपाता जुतं // वृदं दावानलालीढं / खगा श्व चिराश्रिताः॥ ए // त्यज्यतां त्यज्यतां राज्यं / दीयतां दीयतां च सा // पश्चात्तापहतैः पश्चा-दपि स्मायेति वाग्मम // 70 // इति श्रुत्वा रामसेनः / क्रोधोद्भतारुणेक्षणः॥ समुन्वसितसर्वांगो / रणांगणमिवाश्रितः॥१॥ पादेनास्फोव्य भूपीठं / प्रकंपितधराधरं.॥ पाणिनास्फाख्य दोर्दमं / प्रतिगर्जितविष्टपं // 2 // इत्यूचे रे तवेशस्य / दत्तः पादोऽस्ति मूर्धनि // यावान्यां दोसहायान्यां / तथा तत्पक्षपातिनां // 73. // किं तस्य पौरुषं ब्रूषे / सामान्यजननीतिकृत् // एते ते न परं वृक्षा / वात्यया प्रपतंति ये // 4 // श्तो गढ यथेचं त्वं / प्रनो रोषं पुषाण च || P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun-Aaradhak Trust