________________ चितः / किं जोः खपिषि सांप्रतं // सूरप्रजस्तव जाता / मृतो धिक्त्वां सुनिष्ठरं // ए॥ | इत्याकर्ण्य महापुःख-समीरणसमीरितः // दणाशिप्रजप्राणा / उड्डीय तृणवद्ययुः // 10 // मृत्वोत्पन्नः स एतस्मिन् / स्थाने यदो मनोरमः॥ व्यंतरोऽपि तथा दृष्ट्वा / विखिन्नो निःसृतस्ततः // 1 // शशिप्रजप्रियाः सर्वा / रोदनं चक्रुरुच्चकैः // श्रुत्वाकंदान् समायात-स्तत्र सूरप्रनो नृपः॥२॥ञातरं मृतमालोक्या-लिंग्य तत्कंठकंदलं // मां विहाय निराधारं / जातः कुत्र गतो नवान् // 3 // स एवं विलपन्नेव / दीर्णवदःस्थलः क्षणात् // सर्वत्र वातरं दृष्टुमिवैकोऽप्याप पंचतां // 4 // प्रयुज्यावधिविज्ञान-मथो यक्षो मनोरमः ॥आगत्य नगरस्यांत-रमात्यादीनदोऽवदत् // 5 // शशिप्रनोऽई मृत्वातो। जातो यदो मनोरमः // सूरप्रजोऽपि नगरेऽस्मिन्नेवाभृष्ट्यंतरोत्तमः // 6 // तदात्मनामनाथत्वं / न मंतव्यं मनागपि ॥पालनीयमिदं राज्यं / युष्माजिायमार्गगैः // 7 // कियत्यपि गते काले। राज्यनारधुरंधर // नरं कंचिदिहानीय / दास्ये युष्मन्यमुत्तमं // 7 // श्त्या श्वास्य नरान् सर्वान् / चतस्रः क.. |यिकाश्च ताः॥ समानीय स आयासी-दस्मिन्नेव निजास्पदे // ए॥ पातालमंदिरे तन / / IL. P.P.AC. Gunratnasuri M.S: Jun Gun Aaradhak Trust