________________ प्रा वदत् // 7 // दत्वैकमासनं तत्र / देवदिन्नं निवेश्य च // शृणु वृत्तांतमित्युक्त्वा / सा तब क्तुं प्रचक्रमे // ए // यथा अस्त्यत्र धातकीखंडे / जरतक्षेत्रमंतरा // वैताठ्यपर्वतस्तत्र / नगरं जनवडनं // ए॥ तत्र सूरप्रभो राजा / युवराजः शशिप्रजः // अजुजातामुनी राज्य-मन्योन्यं स्नेहशालिनी // 1 // सूरकांताजवत्कांता / सूरप्रजनरेशितुः // तस्याः कन्या मनोज्ञांग्य-श्चतस्रो जज्ञिरे क्रमात् // ए // आद्या वेगवती तासु / द्वितीया दीप्तिमत्यनुत् // तृतीया रंगवत्यासी-चरमा च रमावती // ए३ // ताज्यो बाल्येऽपि योग्याज्यः / सजाग्याच्यस्ततः पिता // प्रज्ञप्त्याया महाविद्याः। प्रायवत्सलाशयः // ए४ // अन्यस्मिन् वासरे तो छौ / जातरौ काननांतरे // क्रीमंती व्यंतरेणैके-नालोक्यैवं विचिंतितं // एए // एवंविधो न बंधूनां / स्नेहः कर चन दृश्यते // खपत्नीप्रणयापास्ता-शेषप्रेम्णां नृणामिह // ए६ // अकृत्रिममिव प्रेम / ह. श्यते तावदेतयोः // तथापि संध्यासमये / करिष्ये तत्परीक्षणं // // तयोः संप्राप्तयोः || खख-वासमंदिरमंतरा // निश्यदृश्यः सुरः प्राप / शशिप्रनगृहांगणे // // उच्चैरूचे नि RRIAGIGunratnasuri Mas. Jun Gun Aaradhak Trust