________________ . ए प्रत्येक जो मितां / गुमघृतादिकवस्तुपरंपरां // अथ सुखादपि संचरतीलया। प्रकुरुते न हि कोऽपि निवारणां // 1 // .... कियत्यपि गते काले / स एव वृषनोऽनवत् // जराजर्जरिततनू / रोगोरगनिपीमितः॥ | // 25 // अपश्यन्नगराधीश-स्तं संमें नगरांतरे // व्याकुलो गोकुलं गत्वा-पश्यदेकं जरजवं // 23 // नूपो गोपानुवाचैवं / कुत्र मे पुत्रसन्निजः // इनवत्क्रीमति स्वैरं / सांप्रतं वृषनोत्त मः // 24 // तैरवाचि महाराज / जराजर्जरितोऽधुना // स एवैतादृशीं ताव-दवस्थां प्राप.फुःस्थितः // 25 // युद्धंगणस्स' मज्जे / ढिकियसदेण जस्स नऊंति // दित्तावि दरियवसहा / सुतिरकसिंगा समावि // 26 // पोराणियगयदप्पो / गलंतनयणो चलंतदिसमुहो / सो चेव श्मो वसहो / पम परिघट्टणं सह // 27 // गलितोरुककुद्देशं / स्फूटीजूतास्थिपंजरं // गलबालाकरालास्यं / वायसैाकुलीकृतं // 27 // अनेकत्रणबिज्राम्य-न्मक्षिकाकुलसंकुलं // जरजवं तमालोक्य / राजा वैराग्यमासदत् // श्ए // युग्मं // विषादापन्नचित्तेन / चुपेन प... रिजावितं // असारः खलु संसारः / खलप्रीतिवदस्थिरः // 30 // विद्युझतेव जीवायु-यौवनं || Jun Gun Aaradhak Trust .P.P. AC: Gunratnasuri MS