________________ चरित्रं प्रत्येक पुष्पनारगुरुं तरुं // 50 // स तस्यादाय पुष्पाणि / जघौ चालूत्खरः कृणात् // वनं खरस्व. नं कुर्वन् / बज्राम गतचेतनः // 51 // विद्याधरः स आयासी–दपश्यंस्तत्र तं नरं // गतो वनं व्यलोकिष्ट / खरं खरतरस्वरं // 52 // ज्ञातो व्यतिकरोऽनेन / विद्याधरवरस्ततः // अचिं. 303 तयन्निषिोऽर्थे-ऽधिकं लोकः प्रवर्तते // 53 // अथादायाऽपरागस्य / परागीणि सुमानि सः // अपरांगं पराकार्षी-त्तस्याघ्राप्य कृपापरः // 54 // विद्याधरोपदेशेन / स्वनावस्थः कुमारराट् // जन्जयोवृक्षयोः पुष्पा-ण्याददे तानि सादरः // 55 // विद्याधरस्तमादाय / समुत्पत्यैत्य च क्षणात् // मुमोचोच्चैस्तरे तस्या / विशोपरितनदणे // 56 // निःकारणोपकारिन् नो / जूरियं भूषिता त्वया // स्तुत्वेत्यादिप्रकारेण / कुमारस्तं व्यसर्जयत् // 57 // उपोषितत्रयक्षामा। श्यामा कामातुरांतरा // दृष्ट्वा रतिविलासा सा। हृष्टा प्राणप्रियागमं // 5 // अमृतेनेव संसिक्ता। सा समुत्थाय संत्रमात् // तं निवेश्य स्वशय्याया-मपृष्ठत्कुशलागमं ॥पए // कुमारागमनोदंतं / दासी गत्वा न्यवेदयत् // कुहिनी हा कथं पापी। ममारिरयमाययौ // 60 // करोमि कपट किंचित् / पादुकाहृतिलोपकृत् // ध्यात्वेति सा शिरोबाहु PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust