________________ श // 7 // अहमुद्धंध्य तं साधु / तबीर्षोपरि संचरन् // यावद् व्रजामि तावन्मे / विमानमपतदनुवि // 3 // विलक्षः पतितो व्योम्नो। बिमाल श्व सिक्ककात् // यावत्पश्यामि तावत्त॥ मद्रादं मुनिपुंगवं // 4 // अरे पापिष्ट गर्विष्ट / मुन्यवज्ञाविधायक // विद्याघ्रष्टो नवान् नूया-काकाकारश्च सांप्रतं // 5 // इदं च पंजराकारं / विमानं जवतादिति // शशाप रोषतः साध-परिचर्यापरः सुरः॥ 6 // युग्मं // तत्क्षणं तत्तथा जज्ञे। ततः काकाकृतीकृतः॥ पंजरे निर्जरेणाहं / बलादादाय चिदिपे // 7 // दीनास्यं विलंपंतंमां / दृष्ट्वोत्पन्नकृपः सुरः ॥शापस्यावधिमाचष्ट / विशिष्टमुनिसेवकः // 7 // उत्तमः पुरुषः कोऽपि / निजहस्तेन जो. जनं // यदा ते दास्यति तदा / शापमोक्षो जविष्यति // नए // इत्युक्त्वा स्मिन् महारण्ये / मदधिष्टितपंजरं // निबध्य शाखिशाखायां / सुरः स्वस्थानकं ययौ ॥ए॥ यस्मिन्निर्मानुषेऽरण्ये / क एष्यति नरोत्तमः // इति चिंतातुरः काल-मतिवाहितवानहं // ए१ // मत्पुण्यैरधु नाकृष्टः / कुमार त्वमिहागतः // त्वया जोजनदानेन / खन्नावस्थो विनिर्मितः // ए // इति || वृत्तांतमाकर्ण्य / विद्याधरवरोदितं // कुमारो विस्मयं प्रापा-चिंतयच्चेति चेतसि // ए३ // अ. P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust