________________ / तेनोक्तं नास्ति मे चिंता / ततो वणिगजापत // वदं मित्रास्य रत्नस्य / गुणान् दोषांश्च द- / विण // 53 // प्रस्तावे कथयिष्यामि / तेनैवमुदिते सति // सादरं पृष्टवान् येन / पीमाकृचरित्रं जम्मस्फुटं // 55 // अत्रांतरे हयो हेषा-वं कुर्वन् बिभीषणः // संशोजितपुरस्तत्रै-वागतोऽतर्कितागतिः // 55 // तदेशवर्तिनो लोका / नष्टा गुणधरोऽपि च // तद्रत्नग्रहणोपायांश्चिंतयामास नूरिशः // 56 // ततो वणिग्गृहं गत्वा / तदासी पृष्टवानिति // त्वत्स्वामिना च यसब्धं / तात्नं वेत्सि किं न वा // 57 // तयावाचि मम स्वामी / निलपवीं गतोऽनवत् // श्दं मौल्येन पल्लीश-शिवपार्श्वगृहीतवान् // 5 // तीक्ष्णबुद्धिर्निशम्येति / लब्धो. पायः कियत्यपि // गते काले मिषं कृत्वा / स तद्गृहमुपाययौ // ५ए // दत्तासनः स एकांते / नीत्वा गुणधरं जगौं / पूर्वपृष्टं ममार्थ जोः / कथयावसरोऽस्त्ययं // 60 // ऊचे गुणधरेणैवं / शुबुद्धिजिरंगिनिः॥ आदरादत्तवस्तूनां / गुणो दोषश्च नोच्यते // 61 // धनित्वं निर्धनत्वं वा / सुखं वा दुःखमेव वा // यत्प्राप्यं जायते यस्य / संयोगस्तस्य तादृशः // 6 // गंजीरार्थमिदं वाक्यं / युजानं तं वणिग्जगौ // अस्पष्टं वचनं किं त्व-मुन्मत्त श्व जाषसे // || Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.