________________ प्रत्येक // तस्य विधास्यामि / तथाहं न यथा पुनः // करिष्यति स इंदं / पातकं जवपातकं // 3 // || चरित्रं पर जवंत्यो है अपि / कीरीरूपेण तिष्टतां // वनेऽहं च शुकीरूपः / स्थास्याम्यत्रैव पंजरे // // 24 // पश्यामि किं करोत्येष। किं ब्रूते किमु चेष्टते // विद्याधराधमः पश्चा-यथायोग्यं करिज्यते // 25 // इत्युदीर्य कुमारेण / शुकीरूपे प्रिये कृते // औषध्या तिलकं कृत्वा प्रेषिते च वनांतरे // 26 // विद्यया बहुरूपिण्या / शुकीरूपं स्वयं कृतं / तत्रैव पंजरे तस्थौ / तावदागात्स खेचरः // 7 // विद्यासिफिनिमित्तं चा-वतीणों जिनमंदिरे // पंजरासन्नमागत्य / सबजाण शुकीमिति // 27 // प्रतिपद्यख मां मुग्धे / जर्तृत्वेनान्यथा पुनः॥ हाइशीकरिष्यामि / वशीकरणविद्यया // श्ए // तयोक्तं खेचरवेक / नाहमीदे परं वरं // विहायामृतयः शसं / विद्यागर्व करोषि किं // 30 // तत् श्रुत्वा चिंतितं तेन / शब्द एष न हि स्त्रियः॥ दृश्यते यंत्रितं चैत-पंजरं तकिमीदृशं // 31 // श्राः ज्ञातं तां स्त्रियं हृत्वा। कीरीरूपोऽ स्ति कश्चन // महाशगेऽयं धूर्तानां / प्रतिधूर्ता जति यत् // 3 // द्वितीययानयोषध्या / / / / तिलके विहिते सति / एषा सेवास्ति चेत्तर्हि / पुष्पवत्येव जाविनी // 33 // अन्यश्चेत्क- | FP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust