________________ चरित्रं पोल कसदेणा-प्येकेनास्ति पतन्निह // 50 // कदाचिदेष चेत्कूर्च। त्यक्त्वा नक्रं गृहीष्यति // तदा || खम्येनापि / बुटिः कापि न विद्यते // 5 // // उत्तिष्टोत्तिष्ट रे तस्मा-प्रमादं मा कृथा वृथा // प्रदेहि तस्करायास्मै / शीघ्र टंककलङ्ककं // 60 // तदा कूर्च मया त्यक्त्वा / गृहीतं प्राण| मेव हि // धूनयित्वा शिरः शीघ्रं / बलान्नक्रममोचयत् // 6 // वजानेयं गृहकारं / पिधाय सोऽखपत्सुखं // विलक्षः सन्नहं नष्टो / वणिजां मतिरीशी // 6 // तृतीयोऽप्याह वणिजा / पुराहमपि वंचितः॥ एकस्मिन् वत्सरे कछः / कृतोऽभून्मयका पुरा // 63 // तदागामणि गन्येयुः / खादिता तेनं कर्कटी // भया दृष्टे च मुष्ट्याथै-राहतो नर्सितो नृशं // 64 // स रुष्टः प्राह रे दुष्ट / प्रमाणं मामकं तदा // यदा ते सकलं कहं / ध्वंसयाम्यचिरादपि // 65 // कथयित्वेति गत्वांतः-पुरं जे स वैद्यतां // सखिलिस्तत्र भूपोऽभू-तत्र राजागणे ततः // 66 // उवाच भूपति स्वामिन् / खिलिस्ते मस्तके कुतः // अत्र संति न वैद्याः कि-मौषधं यन्न कुर्वते // 67 // राजाह न निराकर्तुं / खजावः शक्यते यया // औषधं न * तथा खिल्ला-विति सर्वे जगुर्जनाः // 60 // अवग्वणिगसो वार्ता / मूर्खाणां विदुषां न च // // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust