________________ तं / यत्र कुत्रापि संस्थितः // 35 // अथावकर्णितः क्रीमन् / राजपुत्रखत्नावतः // विधाय || प्रत्येक वालुकापुंजे। सिंहासन श्वाविशत् // 4 // अपरान् क्रीमतो बालान् / रे रे ददत में करं // | राजाहमित्यनाषिष्ट / स सर्वेषु पराक्रमी // 41 // वखनावेन देहेऽसौ / रुदकंवा समाकु लः // कयत शरीर मे / करोऽयं जवतां मयि // 42 // एवमुक्त समस्तास्ते / संजूय शिशवः सदा // अकार्षुस्तस्य देहस्य / करैः कयनं घनं // 43 // तदादि बालकैः सर्वैः / करककुरितीदृशं // यथार्थ दत्तमेतस्या-निधानं परया मुदा // 4 // आददानः सौम्यमूर्तिः / क्रमेण सकलाः कलाः // राजेव शुक्लपक्षेऽसौ / रराज द्युतिराजितः // 45 // श्मशानं पालया मास / स पितुः स्थानके स्वयं // स किं पुत्रो निजं तातं / निश्चिंतं कुरुते न यः॥ 46 // तदा तत्र श्मशानांत-वंशजालसमाकुले // मूर्तिमंती धर्ममोक्षा-विव साधू समागतौ // 7 // तयोरायः समस्तानां / वंशानां वेत्ति लक्षणं // पर्वादिकविचारं च / गृहीतुश्च फलाफले // // 40 // पाश्चात्येनाथ मुनिना / श्मशाने गछता सता // एकः समुजको दंगो-दर्शि वंशस्य गहरे // 4 // स वाद्यं पृष्टवान् साधुं / जगवन् कीदृशो नवेत् // कल्याणदायकः कोह- // P.P.A. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust